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-किशोर और किशोरियों, दोनों को दें पैष्टिक से भरपूर आहार
-पोषण का ख्याल रखने से घर के बच्चे आगे रहेंगे स्वस्थ
बांका-
सही पोषण से घर रोशन रहता है। बच्चे को अगर सही पोषण मिल जाता है तो आगे चलकर वह स्वस्थ रहता है। तमाम बीमारियों से वह बचा रहता है। अगर बीमारी की चपेट में आ भी जाता तो वह उससे जल्द उबर जाता है। लेकिन अगर सही पोषण नहीं मिलता है तो स्वास्थ्य को लेकर तमाम परेशानियों का सामना करना पड़ता । इसमें एक और बात ध्यान देने वाली है। हमारा समाज पुरुष प्रधान है। इसमें किशोर पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है और किशोरियों पर कम। ऐसा नहीं करना चाहिए। किशोर और किशोरियों पर बराबर ध्यान देना चाहिए। किशोरियों को अगर सही पोषण नहीं मिलता है तो वह आगे चलकर कुपोषित हो सकती या फिर एनीमिया की चपेट में भी आ सकती है। वहीं दूसरी ओर किशोर को ज्यादा प्रोटीनयुक्त आहार देने से भी वह कई तरह की बीमारियों की चपेट में आ सकता , जिससे परेशानी भी हो सकती है। इसलिए दोनों को उचित और सही आहार देना चाहिए। हालांकि समाज में अब बदलाव भी आ रहा और लोग इस मानसिकता से ऊपर उठ रहे हैं।
शहरी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के प्रभारी ड़ॉ. सुनील कुमार चौधरी कहते हैं कि बच्चे एक समान होते हैं। इसमें किशोर और किशोरियों को लेकर भेदभाव नहीं करना चाहिए। कोई करता भी नहीं है, लेकिन सामाजिक मान्यताओं में बेटे को थोड़ा अधिक स्थान दिया जाता है, इस वजह से उसे अधिक लाड़-प्यार मिलता है। लेकिन ये सब बातें अब पीछे छूट रही हैं। उन्होंने कहा कि इन बातों से ऊपर उठने के लिए जरूरी है कि घर का एक सदस्य, संभव हो तो जो घर में मालिक की हैसियत रखता हो वे इसकी निगरानी करें। इससे ये भेदभाव खत्म हो जाएंगे। साथ ही निगरानी करने से बच्चों को सही पोषण भी मिल पाएगा। घर में सही पोषण से युक्त सामान आएगा। घर के अन्य सदस्य भी इस बात को मानने में आनाकानी नहीं करेंगे।
फास्ट फूड से बचाने की करें कोशिशः डॉ. चौधरी कहते हैं कि बच्चों को सही पोषण तो देना ही चाहिए, साथ ही अनावश्यक आदत से भी बचाना चाहिए। अक्सर देखा जाता है कि लोग बच्चों को लाड़-प्यार में चॉकलेट, पिज्जा, बर्गर इत्यादि का आदि बना देते हैं। इससे आगे चलकर उनकी सेहत खराब होती है। जन्म के समय से ही बच्चों के पोषण पर ध्यान दें। जन्म के एक घंटे के बाद मां का पीला दूध अवश्य पिलाएं। इसके बाद छह महीने तक सिर्फ मां का ही दूध दें। पानी तक देने से भी परहेज करें। छह महीने के बाद पूरक आहार देना शुरू करें। खीर, खिचड़ी इत्यादि दें। दो वर्ष तक बच्चों को मां का दूध का सेवन कराएं। इसके बाद दूध, हरी सब्जियों और पौष्टिक युक्त भोजन का आदि बनाएं। इसमें इस बात का भी ध्यान रखें कि बच्चे और बच्चियों में भेदभाव नहीं हो। इससे आपके बच्चे स्वस्थ रहेंगे और आपको ज्यादा परेशानी नहीं आएगी।
रिपोर्टर
The Reporter specializes in covering a news beat, produces daily news for Aaple Rajya News
Dr. Rajesh Kumar